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गीत ग़ज़ल की
सब राधाएं
राजनीति की नगरवधू के
अंधे-अंधेरे कोने में
औंधी पड़ी हैं
उजले चमकीले जोड़े में
और इधर लाचार खड़ा हूं
फीकी हंसी के खोटे सिक्के
खनक रहे हैं
मेरे भीतर की सब धाराएं
सनक रही हैं