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मुझे क्या हो गया है / गुलरेज़ शहज़ाद

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मुझे क्या हो गया है
खुली आंखों में
सपना झांकता है
मेरी नींदों में कोई
जागता है
कहीं जाऊं
हर इक मंज़र चहकता है
मेरी तन्हाइयां
संगीत रस में
डूब जाती हैं
रिमझिम बारिशें गिरती हैं
लय सुर ताल में जब भी
लगे जैसे
कोई पाज़ेब बांधे
पुकारे नाम ले के मुझको,नाचे
मैं अब सजने संवरने
लग गया हूं
लगे जैसे
मेरा पिछला सभी कुछ
खो गया है
मुझे क्या हो गया है