Last modified on 14 सितम्बर 2008, at 18:31

जिस पर बीता / अरुण कमल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:31, 14 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल }} एक औरत पूरे शरीर से रो रही थी एक पछाड़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक औरत पूरे शरीर से रो रही थी

एक पछाड़ थी वह

हाहाकार


उससे बड़ी एक औरत उसे छाती से

बांधे हुई थी पत्थर बनी

और एक रिक्शा खींच रहा था लगातार

चुप एकटक पैडल मारता


हर घर हर दुकान को उकटेरता

पूरे शहर में घूम रहा था हाहाकार।