Last modified on 15 जून 2020, at 17:10

सूरज / इरशाद अज़ीज़

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:10, 15 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात सुपना बुणै
दिन हुवै कै
चाल पड़ै बो आपरै मारग
दूजां नै बांटतो उजाळो
आखी रात अंधारै मांय
गणमण करतौ रैवै
नीं ठाह कांई कैवै है
किणनैं कैवै है
बापड़ो सूरज
आपो-आपरी दुनिया मांय
भमतो रैवै।