कभी बने है छाँव तो, कभी बने हैं धूप!
सौरभ जीती लड़कियाँ, जाने कितने रूप!
जीती है सब लड़कियाँ, कुछ ऐसे अनुबंध!
दर्दों में निभते जहाँ, प्यार भरे सम्बंध!
रही बढ़ाती मायके, बाबुल का सम्मान!
रखती हरदम लड़कियाँ, लाज शर्म का ध्यान!
दुनिया सारी छोड़कर, दे साजन का साथ!
बनती दुल्हन लड़कियाँ, पहने कंगन हाथ!
छोड़े बच्चों के लिए, अपने सब किरदार!
बनती है माँ लड़कियाँ, देती प्यार दुलार!
माँ, बेटी, पत्नी बने, भूली मस्ती मौज!
गिरकर सम्हले लड़कियाँ, सौरभ आये रोज!
नींद गवाएँ रात की, दिन का खोये चैन!
नजर झुकाये लड़कियाँ, रहती क्यों बेचैन!
कदम-कदम पर चाहिए, हमको इनका प्यार!
मांग रही क्यों लड़कियाँ, आज दया उपहार!
बेटी से चिड़िया कहे, मत फैलाना पाँख!
आँगन-आँगन घूरती, अब बाजों की आँख!
लुटे रोज अब बेटियाँ, नाच रहे हैवान!
कली-कली में खौफ है, माली है हैरान!
आज बढ़े-कैसे बचे, बेटी का सम्मान!
घात लगाए ढूँढते, हरदम जो शैतान!
दुष्कर्मी बख्सों नहीं, करे हिन्द ये मांग!
करनी जैसी वह भरे, दो फांसी पर टांग!
बेटी मेरे देश की, लिखती रोज विधान!
नाम कमाकर देश में, रचें नई पहचान!
बेटे को सब कुछ दिया, खुलकर बरसे फूल!
लेकिन बेटी को दिए, बस नियमों के शूल!
सुरसा जैसी हो गई, बस बेटे की चाह!
बिन खंजर के मारती, बेटी को अब आह!
झूठे नारो से भरा, झूठा सकल समाज!
बेटी मन से मांगता, कौन यहाँ पर आज!
बेटी मन से मांगिये, जुड़ जाये जज्बात!
हर आँगन में देखना, सुधरेगा अनुपात!
झूठे योजन है सभी, झूठे है अभियान!
दिल में जब तक ना जगे, बेटी का अरमान!
अब तो सहना छोड़ दो, परम्परा का दंश!
बेटी से भी मानिये, चलता कुल का वंश!
बेटी कोमल फूल-सी, है जाड़े की धूप!
तेरे आँगन में खिले, बदल-बदलकर रूप!
सुबह-शाम के जाप में, जब आये भगवान!
बेटी घर में मांगकर, रखना उनका मान!
शिखर चढ़े हैं बेटियाँ, नाप रही आकाश!
फिर ये माँ की कोख में, बनती हैं क्यों लाश!