गौब्यंदे भौ जल ब्याधि अपारा।
तामैं कछू सूझत वार न पारा।। टेक।।
अगम ग्रेह दूर दूरंतर, बोलि भरोस न देहू।
तेरी भगति परोहन, संत अरोहन, मोहि चढ़ाइ न लेहू।।१।।
लोह की नाव पखांनि बोझा, सुकृत भाव बिहूंनां।
लोभ तरंग मोह भयौ पाला, मीन भयौ मन लीना।।२।।
दीनानाथ सुनहु बीनती, कौंनै हेतु बिलंबे।
रैदास दास संत चरंन, मोहि अब अवलंबन दीजै।।३।।