गाँव
एक हरा-भरा चारागाह है
जिसे प्रत्येक वर्ष
ज़मींदार का छुट्टा साण्ड
चर जाता है
भूमिहीन किसान
अपने शरीर को खाद बनाकर
प्रत्येक वर्ष खेतों में पटाता है
एवज़ में,
बन्दूक के कुन्दों से उसकी पिटाई होती है
जब एक जोड़ी हाथ
दोनाली बन्दूक को थाम लेता है
नक्सलवादी कहा जाने लगता है
वारण्ट और कुर्की-ज़ब्ती होती है
अंततः उसे गोली से उड़ा दिया जाता है
यही क़िस्सा है
खेत और खलिहान का
मज़दूर और किसान का
सामन्त और सरकार का
बूढ़े-बुजुर्ग ऐसा ही कहते हैं