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अँधियारी राहें / कृष्णा वर्मा

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10
करते रहें
नेकियाँ दिन-रात
नेकियों के चिराग़
रौशनी देंगे
आने वाले वक़्त की
अँधियारी राहों को।
11
सीखो जीने का
हुनर कलम से
अपनी हर बूँद
ख़र्च करती
औरों के जीवन को
सवाया बनाने में।
12
बन न पाई
छाँव कभी ज़िंदगी
शहतूत-सी ठंडी
चुभती रही
बबूल- सी, रेत सी
किरकिराती रही।
13
दमन करो
नफ़रत का प्यारे
छोड़ो द्वेष लड़ाई
मन देहरी
धरो दीप नेह का
हर्षेंगे रघुराई।
14
रखती नहीं
हवा कभी हिसाब
कितने छाले पाँव
साँस बाँटती
फिरे शहर भर
गली-गली औ गाँव।
15
लफ्ज़ों का होता
अपना ही संसार
कुछ बनें रक्षक
कुछ करते
ग़ुलामी, कुछ प्यार
कुछ केवल वार।
16
अपने जाये
हुए जब पराये
विवश ताल-तट
डूबीं इच्छाएँ
अजब दुख झेले
रह गए अकेले।
17
भाग रही है
ये सुख भोगी देह
कर क़दमताल
हाँफता हुआ
चल रहा बेबस
पीछे बावरा मन।
18
बैठते तुम
जो बुज़ुर्गों के पास
तो मिलता तज़ुर्बा
चंद लम्हों में
अद्भुत व अनोखा
बचता भटकाव।