नन्ही कोमल हथेली, थामे मेरा हाथ
भोले नयनों में भरा, है अटल विश्वास
ये नन्हे मुन्ने राजा, धीरे धीरे बढेंगें
आज ऊंगली थामे चलते है,
कल, ना जाने क्या कहेंगें ?
भावि के हाथों में सब -
स्वप्न मेरी आँखों में !
देखा करतीं जो, तुझे
नन्हे, लाल, सलोने !
मन भीगा रहता है
प्रेम की गंगा यमुना है
कभी तुम कृष्ण बन जाते,
कभी राम, या भरत लला !
शिशु मुस्कान है अजोड़
जग में नहीं, इसका तोड़
नन्हे मुन्ने आज के बच्चे,
कल के होंगें खूब सयाने
दूध, मिठाई, टॉफी बिस्कुट ,
फल, मीठे और रसीले,
जो तुम्हें खिलाती हूँ, मैं,
चाव भरी, अपने हाथों से !
जब मीठी नींद सुलाती हूँ,
तुम पूछते, हो यूं मुझसे,
" दादी, परी कब आयेगी ? "
मैं कहती, " जब, तू आँखें मूंदे ! "
फिर सो जाता है हर शिशु,
विश्वास भरा लिए मन !
मैं उठकर कविता रचती ~
कैसे लिख दूं, नन्हे राजा ,
क्यूं आँखें मेरी यूं भरतीं ?
खूब देखती, तुम्हें प्रेमवश
फिर भी बहुत रह जाता है
कैसे समझाऊँ लिखकर यूं
क्या, मेरा तुझसे नाता है ?
तुम ईश्वर के कृपा - वरदान
हो सदा, तुम्हारा शुभ्कल्याण
खूब हंसो, बढो, कूदो और खेलो-
दादी का " Cookie~ कूकी " तू बने महान !
(प्रिय 'ओरायन' के लिए)