Last modified on 20 सितम्बर 2008, at 07:12

अधिक नहीं,वे अधिकतर की बात करते हैं / जहीर कुरैशी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 07:12, 20 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem> अधिक नहीं ,वे अधिकतर की बात करते हैं नदी को छोड़ समंदर की बात कर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अधिक नहीं ,वे अधिकतर की बात करते हैं
नदी को छोड़ समंदर की बात करते हैं

हमारे दौर में इन्सान का अकाल रहा
ये लोग फिर भी पयम्बर की बात करते हैं

जिन्हें भरोसा नहीं है स्वयं की मेहनत पर
वे रोज़ ही किसी मन्तर की बात करते हैं

नहीं है नींव के पत्थर का जिक्र इनके यहाँ
ये बेशकीमती पत्थर की बात करते हैं

ये अफसरी भी मनोरोग बन गई आखिर
वो अपने घर में भी दफ्तर की बात करते हैं

मैं कैसे मान लूँ —वो लोग हो गये हैं निडर
जो बार —बार किसी डर की बात करते हैं

वो अपने आगे किसी और को नहीं गिनते
वो सिर्फ अपने ही शायर की बात करते हैं.