Last modified on 25 जुलाई 2020, at 19:48

जगत-घट को विष से कर पूर्ण / हरिवंशराय बच्चन

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:48, 25 जुलाई 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जगत-घट को विष से कर पूर्ण
किया जिन हाथों ने तैयार,
लगाया उसके मुख पर, नारि,
तुम्हारे अधरों का मधु सार,

नहीं तो देता कब का देता तोड़
पुरुष-विष-घट यह ठोकर मार,
इसी मधु को लेने को स्वाद
हलाहल पी जाता संसार!