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छंद / भूपराम शर्मा भूप

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भतरी गोवर्धनपुर है निवास मेरा,
किंतु बाल-बाटिका में जीवन बिताता हूँ।
'मास्टर जी,' पंडित जी',' कवि जी' बताते लोग,
किंतु मैं तो मुंशी जी कहाके सुख पाता हूँ॥
'शंखधर ब्राह्मण' बताते परिजन मुझे,
अध्यापक जाति अपनी मैं बतलाता हूँ।
प्राइमरी पाठशालाओं के भोले शिशुओं को,
'अ-आ-इ-ई-उ-ऊ' आदि अक्षर सिखाता हूँ॥

अपने अबोध और भोले शिशुओं के बीच,
हलचल में भी अविकल कल पाता हूँ।
जग के प्रपंच-द्वंद-छल-छंद-बैर आदि,
व्याधियों की आँधियों से दूर बच जाता हूँ॥
शिशुओं के क्षणिक सुयोग मिलते ही निज,
रोग-भोग विकल वियोग बिसराता हूँ।
कष्ट नहीं देते गर्म-रेत से हज़ारों कष्ट,
जब शिशुओं के श्रद्धा-सर में नहाता हूँ॥