Last modified on 20 सितम्बर 2008, at 20:58

बरसों पहले / नोमान शौक़

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:58, 20 सितम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनता रहता हूं
किसी का मार्मिक रूदन
किसी का दिल दहला देने वाला विलाप
चुपचाप

निकाल न पाया मैं
कोई क़ीमती सामान
अपनी जान बचाने की ललक
या जान देने की जल्दबाज़ी में

मर चुके होंगे सब
कुछ भी बचा न होगा
जिसे निकाला जा सके
अपनी आत्मा को क्षति पहुंचाए बिना
और क्यों उठाया जाए यह जोखिम भी
जब मैं हूं ही नहीं
न अपने लिए
न अपनाें के लिए

लेकिन कभी-कभी
जीवन की लम्बी रेल के
किसी दुर्धटनाग्रस्त डिब्बे से
उठती हुई आवाजें क़हती हैं
मैं छोड़ आया हूं ख़ुद को
टूटी हुई फ़िश प्लेटों
और उखड़ी हुई पटरियों के बीच
किसी असमंजस में
वर्षों पहले !