- गीतों के पाटल …
- गीतों के शतदल्…?
- नहीं, नहीं-
- गीतों के बादल ।
- उगे आ रहे …
- उड़े जा रहे …?
- नहीं, नहीं-
- मन के नभ पर आये औ’ बहे ।
- कुछ-कुछ सकुचाये …
- सिमटे-शरमाये …?
- नहीं, नहीं-
- ठिठके, सिहरे, लहराये ।
- तरसे …
- या पुलक-पुलक हरषे …?
- नहीं, नहीं-
- जन-मन की धरती पर बरसे ।
- और ज़मीं नम हुई …
- तपन ज़रा कम हुई …?
- नहीं- नहीं-
- बादल बरसे तो मन छुई-मुई, छुई-मुई ।
- कितने ही बिम्बों की कौंध से प्रकाशित हो
- अब कविता यों बनी कि-
- “ गीतों के बादल
- मन के नभ पर आये औ’ बहे ।
- ठिठके, सिहरे, लहराये,
- जन-मन की धरती पर बरसे …
- बदल बरसे तो मन छुई- मुई, छुई-मुई ।“
- हाय मैं । अनावृत मैं ॥
- जगती के सम्मुख मैं ॥