Last modified on 10 अगस्त 2020, at 15:49

अपूर्ण मृत्यु / दीपक जायसवाल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 10 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मानुएल बांदेरा मैं जब भी मरूँगा
पूर्ण मृत्यु नहीं
मृत्यु में अधूरापन लिए मरूँगा
मैं जीवित रहूँगा कुछ हद तक
लोगों की स्मृतियों में
मस्तिष्क में
त्वचा में
हृदयों में
धरती में
आसमान के सूनेपन में
आग में
पानी में
किसी गिलहरी की धारियों में
तितली के पंख में
किसी विरही चिरई के रुदन में
मैं जानता हूँ मृत्यु अपरिहार्य है
मैं ज़रूर मरूँगा
पर
पूरी तरह नहीं
एक दिन
मैं दूसरी दुनिया से ऊब जाऊँगा
और इन स्मृतियों, छायाओं
स्पर्शों के धागों को जोड़ते हुए
फिर लौट आऊँगा
उस अँधेरी दुनिया के द्वारपाल से
यह कहते हुए कि
देखो
मेरा घर वहाँ नीचे है
मेरे
अपने
मेरे इन्तजार में हैं