ज़रा तुम बदलते
मेरे साथ चलते
जो होती शराफत
न ऐसे उछलते
अगर मोम होते
कभी तो पिघलते
कड़ी धूप में भी
बराबर निकलते
ख़ुदी हैं मदारी
ख़ुदी से बहलते
ज़रा तुम बदलते
मेरे साथ चलते
जो होती शराफत
न ऐसे उछलते
अगर मोम होते
कभी तो पिघलते
कड़ी धूप में भी
बराबर निकलते
ख़ुदी हैं मदारी
ख़ुदी से बहलते