Last modified on 11 अगस्त 2020, at 19:30

किया है हवन तो हथेली जली है / सूर्यपाल सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:30, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यपाल सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किया है हवन तो हथेली जली है।
कहो किस तरह ज़िन्दगी यह पली है?

यहाँ देष दुनिया सभी दांव पर हैं,
न उत्कोच लेते उँगलियाँ जली हैं।

कली कंटकों की प्रकृति तो अलग है,
मगर कंटकों बीच पलती कली है।

यहाँ आग पानी व तिनका सभी हैं,
लगा आग फिर वे बुझाते गली हैं।

जलाओ बुझाओ बुझाकर जलाओ,
बची ज़िन्दगी की न कोई तली है।