Last modified on 13 अगस्त 2020, at 18:58

युग दर्पण / त्रिलोचन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:58, 13 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |अनुवादक= |संग्रह=तुम्हे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बन्धु प्रशंसा की है मैंने सदा गधे की
कितना सहनशील होता है, लाज नधे की
ढोता है, हिलमिलकर साथ-साथ चरता है
कितना सामाजिक है, यह है चाल सधे की

सिंह जंगली होता है, उससे डरता है
सारा जग, दुनिया का कौन भला करता है ?
फिर इसका क्यों गुण गाएँं ? क्यों बड़ा बताएँ ?
पोस मानता नहीं अकड़ लेकर मरता है

और गधा यह मारें पीटें और सताएँ
जितना जी चाहे, मनचाही घात घताएँ
क्या जाने विरोध, कहते हैं इसे शिष्टता
जैसा जी चाहे जीवन के सूत कताएँ

मानव की सन्तति में केवल बची धृष्टता
उत्कृष्टता गई, आई है अब निकृष्टता ।