मंजर गए आम
कोइलिया न बोली
बाटों के अपने
हाथ उठाए
धरती
वसन्ती -सखी को बुलाए
पड़े हैं सब काम
कोइलिया न बोली
पाकर नीम ने
पात गिराए
बात अपत की
हवा फैलाए
कहाँ गए श्याम
कोइलिया न बोली ।
मंजर गए आम
कोइलिया न बोली
बाटों के अपने
हाथ उठाए
धरती
वसन्ती -सखी को बुलाए
पड़े हैं सब काम
कोइलिया न बोली
पाकर नीम ने
पात गिराए
बात अपत की
हवा फैलाए
कहाँ गए श्याम
कोइलिया न बोली ।