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निर्झर / त्रिलोचन

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               अविरल झर रहा निर्झर
पर पसीजी ना शिला
               यह मिला जीवन शेष !
निज पल गिन रहा हंस - रो ।
               ’नहीं’ या ’हाँ’ सदैव अशेष !!
                   तरु-दल बोलता मर्-मर् ।