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प्यास / त्रिलोचन

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                  कैसी नित नई यह प्यास
हो गया प्रति कण्ठ में
                  जिसका कि अब आवास
              तृषित छूटे हैं उसी की ओर
यति कहाँ — समझें कि यह निशि भोर
               चाहते भर हैं कृपा की कोर
       उठ रहा प्रति रोम से गति रोर —
                  जग भर का यही अभ्यास