नयन की रसधार
सुरभि के संस्पर्श में
कहती पुकार पुकार —
मैं नदी, तुम कूल-तरु
निर्मूल दूर — विचार
भेद नव होना असम्भव
जब तुम्हीं आधार
कर लो धार का उद्धार ।
नयन की रसधार
सुरभि के संस्पर्श में
कहती पुकार पुकार —
मैं नदी, तुम कूल-तरु
निर्मूल दूर — विचार
भेद नव होना असम्भव
जब तुम्हीं आधार
कर लो धार का उद्धार ।