दूर, अति दूर, क्षितिज के पार
कनक का रच सुन्दर संसार
हरित अंकुर ले उठा उभार
प्राप्त कर जग का मधुर व्यवहार ।
बढ़ा, वह उद्धत हो स्वयमेव
वह पड़ा पाकर कुटिल बयार
धरा के धसके मानस नेत्र
वितरने लगे उसे धिक्कार !
दूर, अति दूर, क्षितिज के पार
कनक का रच सुन्दर संसार
हरित अंकुर ले उठा उभार
प्राप्त कर जग का मधुर व्यवहार ।
बढ़ा, वह उद्धत हो स्वयमेव
वह पड़ा पाकर कुटिल बयार
धरा के धसके मानस नेत्र
वितरने लगे उसे धिक्कार !