Last modified on 15 अगस्त 2020, at 01:16

उदासी / विपिन चौधरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:16, 15 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शान्त जीवन में उतरना
उसे भाता है
उतरी वह बहुत हौले से
और बनी रही यहीं
 
अब उसे कहीं नहीं जाना
कोई हड़बड़ी नहीं उसे
 
अब उससे बोलना-बतलाना है बहुत आसान
हो सकता है कल को वह बने
मेरी सबसे अच्छी सखी
 
ख़ुश हूँ कि इस बार पहले की तरह
स्वप्न में नहीं
उतरी है वह जीवन के ठीक बीचोंबीच
 
लाख चाहने पर भी
नहीं कह सकती उसे लौट जाने को
 
उदासी ने भी
कहाँ पूछा था
उतरने से पहले
मेरे पार्श्व में