Last modified on 21 सितम्बर 2008, at 23:24

आग / चन्द्रकान्त देवताले

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:24, 21 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले |संग्रह= }} <poem> पैदा हुआ जिस आ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पैदा हुआ जिस आग से
खा जाएगी एक दिन वही मुझको
आग का स्वाद ही तो
कविता, प्रेम, जीवन-संघर्ष समूचा
और मृत्यु का प्रवेश द्वार भी जिस पर लिखा -
मना है रोते हुए प्रवेश करना

मैं एक साथ चाकू और फूल आग का
आग की रौशनी और गंध में
चमकता-महकता- विहँसता हुआ

याद हैं मुझे कई पुरखे हमारे
जो ताज़िन्दगी बन कर रहे
सुलगती उम्मीदों के प्रवक्ता
मौजूद हैं वे आज भी
कविताओं के थपेड़ों में
आग के स्मारकों की तरह

इन पर लुढ़कता लपटों का पसीना
फेंकता रहता है सवालों की चिंगारियाँ
ज़िन्दा लोगों की तरफ़