Last modified on 17 अगस्त 2020, at 12:20

एक झूठ / सुरेन्द्र डी सोनी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 17 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

परदा ख़ाली है
लेकिन भरा
एक प्रकाश मूर्तमान रहता है
सफ़ेद, लाल या हरा...

तुम्हें
नहीं दीखता कोई चित्र
पर कुछ न कुछ
उभरा रहता है
अवश्य यहाँ

ख़ूब कहा तुमने…

दार्शनिक के रूप में
अपनी स्थापना को
पुष्ट करने की कला
कोई तुमसे सीखे

यह जानकर भी
कि यहाँ न कोई परदा है
और न ही इसे
भरा रखने वाला कोई रंग
चाहते हो तुम
कि सब तुम्हारा कहा मानें

दर्शननामी चादर ओढ़कर
औरों को
भ्रम में रखने वाले विद्वानजी...

स्वयं के भ्रम का
निवारण तो करो
अपने ख़ालीपन से
इतना भी न डरो.. !