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कर्जदार / रमेश ऋतंभर

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मेरा रोम-रोम ज़िन्दगी की जद्दोजहद से जूझते
अनाम-अजनबी लोगों का कर्जदार है
घनघोर बारिश में पानी में डूबी सड़क पर
मुझे गंतव्य तक पहुँचाते उस अनाम रिक्शेवाले का
जिसका किराया मैं चुका नहीं पाया
उस अनजान राहगीर का
जिसने सफ़र में बुखार से बेहोश
मुझको सहारा देकर घर तक पहुँचाया
उस अजनबी दुकानदार का
जिसने महानगर में मुझ भटकते को
दोस्त के घर का सही रास्ता बताया
उस बेनाम चायवाले का
जिसने मुझ प्यासे को प्यार से पानी पिलाया
उस अपरिचित दम्पति का
जिसने तेज बारिश में मुझ भींगते हुए को
अपने घर में शरण दिया
मेरा रोम-रोम मिट्टी, हवा, धूप, पानी के साथ-साथ
उन अनाम-अजनबी लोगों का शुक्रगुज़ार है
जिनका चाहकर भी मैं कभी कर्ज़ चुका नहीं सका।