ओ मेरी कुलदेवी!
कृष्ण की भगिनी
तुम्हारा नाम महामाया किसने रखा!
किशोरवय में 'माया महाठगिनी' सुनकर मैं विस्मित होती थी
सोचती थी तुमने किसका क्या ठगा!
बाद में बताया गया कि 'ब्रह्म सत्यम् जगन्मिथ्या'
सत्य तो तुम्हारा भाई था और तुम मिथ्या!
भाद्रपद के कृष्ण-पक्ष की मध्यरात्रि में
तुम भी तो जन्मी थी
लेकिन तुम्हारे प्राण का मोल कम था जोगमाया
भाई के अनमोल जीवन में अनगिनत बहनों का
चुपचाप मार दिया जाना पुरानी परंपरा रही देवि!
सोचती हूँ तुम अगर बचपन में चोरियाँ करती तो क्या वैसा दुलार मिलता!
तुम भी गाँव के सभी पुरुषों संग रास रचाती तो क्या भगवती कहलाती
गौ-चारण के बहाने तुम कालिंदी-तट पर प्रेयस से मिलती तो गाँव आह्लादित हो भावमग्न रहता!
पांचजन्य फूंकती, चक्र चलाती, गीता का ज्ञान देती हुई
तुम्हारी ओजस्विनी काया कि कल्पना करती हूँ
धर्म के नाम पर अपने बाँधवों का रक्त बहाने पर संसार तुम्हें पूजता!
मुझे भय है कि तुम्हें हर क़दम पर इतना लांछित और अपमानित किया जाता कि तुम्हें जन्मते ही मर जाना बेहतर लगता...