Last modified on 26 अगस्त 2020, at 03:19

शीर्षकहीन कविताएँ / सपन सारन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 26 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सपन सारन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

         (चुहल)

1.

ओस की बूँद
बारिश की बूँद
से बोली —
 शऽऽऽऽऽऽऽऽ !
हल्ला करने की क्या ज़रुरत
पगली !

2.

छोटी छोटी बातें बैठी हैं
कब बड़ी-बड़ी बातें ख़त्म होंगी
तो हमारा नम्बर आएगा ...

3.

शहर के कुत्ते और सड़कें सिकुड़ते जा रहे हैं
एक दिन शहर सिकुड़ कर
एक लकीर बन जाएगा
और दिल्ली वाले कहेंगे — 'हमारी ज़्यादा लम्बी है'
और आप कहेंगे " भौ भौ "

4.

इन आँखों का
इलाज कराओ, मेरे अज़ीज़ !

ये दो हो कर भी ...
एक ही को देखती हैं।

5.

उस मोड़ से आज फिर गुज़री ...
पुरानी एक सिसकी
अब भी
गुमसुम खड़ी थी ...