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हर समय माँ है दुआओं के करीब / जहीर कुरैशी

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हर समय माँ है दुआओं के करीब
जैसे खुशबू हो हवाओं के करीब

शब्द अपने आप गुम होने लगे
जब भी पहुँचे प्रार्थनाओं के करीब

सिर्फ कुछ घंटों का होता है विराग
जो घुमड़ता है चिताओं के करीब

कितनी मुस्तैदी से बैठा है विवेक
आदमी की चेतनाओं के करीब

आँसुओं की धार से ज्यादा मुखर
कुछ नहीं होता व्यथाओं के करीब

जिसमें साहस है वही रुक पाएगा
बैर लेकर , वर्जनाओं के करीब !

एक या दो साल कुछ होते नहीं
हैं कई सदियाँ प्रथाओं के करीब.