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लोक अपना / शशिकान्त गीते

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आग पानी में
लगाने का इरादा
क्या हुआ ?

वे तने मुठ्ठी कसे थे
हाथ सारे
तालियों तब्दील कैसे हो गए
जलती मशालों से उछलते
हौंसले भी
राजपथ की रोशनी में खो गए
और रोशनदान से
गुपचुप अन्धेरा
है चुआ ।

चट्टान- से संकल्प कल्पित
बर्फ़ वाले ढेंकुले-से
हैं अचानक गल बहे
और शिखरों पार से आती
हवाओं के भरोसे
ध्वज बिना फहरे रहे
लोक अपना
स्वप्न बनकर
रह गया फिर अनछुआ ।