नामवर सिंह से मेरा कभी मोहभंग नहीं हुआ
मोहभंग तो भूषण भारतेन्दु गुप्त द्विवेदी प्रसाद
चतुरसेन और रामविलास शर्मा से भी न हुआ था
तो नामवर प्रभृति इत्यादि वग़ैरा तथा अन्य से कैसे होता
समकालीन विभूतियों से मिलने में
देर हुई; कुछ के जीवन की सांध्य वेला थी
कुछ किसी और जगह की बस से निकल चुके थे
तवक़्क़ो मुझे भी किसी से कुछ न थी
मुझे मोहभंग की ख़ुराक पिलाई गर्म गर्म ताज़ा
दशक सत्तर के दो नौजवान प्रवासी बंगालियों ने
दारुण वंद्योपाध्याय भीषण चक्रवर्त्ती
भाँप गए थे मैं किसी नशे की तलाश में हूँ
कैसा लगा तुम्हें, ठीक रहा न ? बोले दोनों नर
मैंने कहा निहायत कड़वा और ख़राब
लानत है इस पर लानत है आप लोगों पर दादा
आप लोग रतनलाल जैसे हो सकते थे
आप उसके जैसा लिख सकते थे
आप उसके जैसा दिख सकते थे
आप काम के कवि हो सकते थे
कुछ दिन वे असमंजस में रहे
दोनों उदीयमान कवि और खोजी
रतनलाल रतनलाल कौन साला रतनलाल
फिर समझ गए कि कोई रतनलाल-
वतनलाल नहीं है
कि यह मेरे दिमाग़ की ख़ुराफ़ात है
कि मैं चम्बल के किनारे से आया
पूर्वी राजस्थान का साधारण ठग हूँ