तक़दीर से कुछ और न हादी से हुआ
कब कोई बड़ा अपनी मुनादी से हुआ
तदबीरें तो सब सोच के काग़ज़ पे रहीं
जो भी हुआ क़ुव्वते-इरादी पे हुआ।
तक़दीर से कुछ और न हादी से हुआ
कब कोई बड़ा अपनी मुनादी से हुआ
तदबीरें तो सब सोच के काग़ज़ पे रहीं
जो भी हुआ क़ुव्वते-इरादी पे हुआ।