दर-पेश मसाइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस
बुरहान भी हाइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस
क्यों तर्ज़े-अमल अपना हो अंजाम बखैर
हम जहल के काइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस।
दर-पेश मसाइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस
बुरहान भी हाइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस
क्यों तर्ज़े-अमल अपना हो अंजाम बखैर
हम जहल के काइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस।