Last modified on 7 सितम्बर 2020, at 15:19

सूरज काका / शकुंतला कालरा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुंतला कालरा |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आसमांन के रंगमंच पर-
सूरज काका नित आते हैं,
संग सुनहरी उषा को ले
हरदम ही वह मुस्कराते हैं।

कितने अच्छे कितने सुंदर
सारे जग से न्यारे-न्यारे,
ना वह तेरे ना हैं मेरे
वे सबके ही प्यारे-प्यारे।

किरणों का उपहार लिए वह
रोज सवेरे आ जाते हैं,
भेद-भाव ना करें किसी से,
समता हमको सिखलाते हैं।

अपनी चमक-दमक को लेकर
पश्चिम में जा छिप जाते हैं,
फिर पूरब से सुबह-सुबह ही
ऊषा किरण को ले आते हैं।