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हमसे हर मौसम सीधा टकराता है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़


हमसे हर मौसम सीधा टकराता है
संसद केवल फटा हुआ इक छाता है

भूख अगर गूँगेपन तक ले जाए तो
आज़ादी का क्या मतलब रह जाता है

लेकिन अब यह प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहा
प्रजातंत्र से जनता का क्या नाता है

बीवी है बीमार , सभी बच्चे भूखे
बाप मगर घर जाने से कतराता है

परम्पराएँ अंदर तक हिल जाती हैं
सन्नाटे में जब कोई चिल्लाता है

क्यूँ न वह प्रतिरोध करे सच्चाई का
अपने खोटे सिक्के जो भुनवाता है.