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पावस / सुरेश विमल

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1
उत्सव
सूखे जंगल की
हरी चिरैया का...
भाग्य हंसा फिर
गांव की
छोटी तलैया का।

2
पुनर्जन्म जैसे
किसान का...
देखते ही देखते
लबालब कर गया
बादल
खेत धान का।

3
मंदिर के अहाते में
कदम्ब लगा
महकने...!
शाखाओं पर
पड़े झूले
अमराइयों में लगे
हंसी के कंगन
खनकने...!

4
कंधे पर
इंद्रधनुष का उत्तरीय
और बादल का काजल...!
पुरवैया के
ऐरावत पर आरूढ़
खटखटाए है इंद्र
वसुधा कि
कुटिया कि आगल।