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गाती बुलबुल / सुरेश विमल

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गाती बुलबुल भीमपलासी।

मनमौजी पत्ते पीपल के
करते हैं तबले पर संगत
बजा बांसुरी बीच-बीच में
भर देती है कोयल रंगत।

जंगल में संगीत सभा यूँ
जम जाती है अच्छी खासी।

वाह-वाह करने का देखो
मोरों का अंदाज़ निराला
बजा बजाकर ताली दुहरा
हुआ जाए भालू मतवाला।

भौंरे जी की गुन-गुन गुन में
होते पूरे राग पिचासी।