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मुस्काओ तो / सुरेश विमल

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मुस्काओ तो ज़रा भैंस जी
बीन बजाएँ हम तुम नाचो
ठुम्मक ठुम ता थईं था
पैरों में बाँधों जो घुंघरू
तो फिर हैं कहने ही क्या।

भरो एक आलाप मधुर
फिर चरना चारा हरा भैंस जी।

सात रंगों में डुबो तूलिका
रंग दे यदि हम देह तुम्हारी
काला अक्षर तुम्हें कहे फिर
जो भी होगा निरा अनाड़ी।

खूब नहाओ लेकिन पहले
पोखर जल से भरा भैंस जी।