है कौन
जो भीतर रहता है
है कौन
जो मुझमे नाज़िर है
जीवन के
जितने पहलू हैं
तुम सब पर
एक नज़र डालो
इच्छा हो
जो भी करने की
रोको मत
उसको कर डालो
तुम चाहोगे
तो हार मिले
चाहो तो
मंजिल हाज़िर है
ये तन तो
जैसे माटी है
जैसे ढालो
ढल जायेगा
पर मन की
तेज उड़ानों को
काबू कैसे
कर पायेगा
ये तन तो
अ़िखर अपना है
पर मन क्यों
यहाँ मुहाज़िर है
है कौन
जो भीतर रहता है
है कौन
जो मुझमे नाज़िर है