Last modified on 28 सितम्बर 2020, at 19:04

डर / कुमार कृष्ण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:04, 28 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=उम्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ज्यों-ज्यों छोटा होता जा रहा है सच
त्यों-त्यों बढ़ती जा रही है काग़ज़ की भूख
कागज की भूख है कविता
वह नहीं खा सकती पूरी रोटी
आदत हो गई है उसे आधी रोटी खाने की
डरता हूँ कोई छुड़ा न ले उससे आधी रोटी भी।