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फुटपाथ / अरविन्द यादव

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फुटपाथ नहीं है सिर्फ
जगह लोगों के चलने की
वल्कि यथार्थ है
आलीशान दुनियाँ से परे
वास्तविक दुनियाँ का

फुटपाथ सहारा है
उन अनाथ व असहायों का
जो रहते हैं अपरिचित ताउम्र
उस स्थान से
जो पहली शर्त है, किसी व्यक्ति की
उस देश का नागरिक होने की

फुटपाथ कब्र है उन उम्मीदों की
जो फुटपाथ पर ही खोलती हैं अपनी आँखें
और फुटपाथ पर ही दौड़ते हुए अनवरत
अन्ततः उसी पर तोड़ देती हैं अपना दम

फुटपाथ बुझाता है पेट की आग
उन असहाय हाथों की
जो खटकाते हैं कटोरा
सामने हर राहगीर के

फुटपाथ बिस्तर है उन लोगों का
जो जान हथेली पर रखकर
सोते हैं यह सोचकर
कि कल का सूरज जगाने आया
तो वह देंगे उसे धन्यवाद
देने के लिए ज़िन्दगी का
एक और दिन

देर रात होटल व मदिरालयों से निकलकर
मदमस्त हाथियों की तरह
फुटपाथ रौंदने वालो
यह ख़्याल रखो
कि फुटपाथ, फुटपाथ नहीं
एक पूरी बस्ती है।