Last modified on 25 अक्टूबर 2020, at 22:45

किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी / फ़िराक़ गोरखपुरी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:45, 25 अक्टूबर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोका है सब, मगर फिर भी

हजार बार ज़माना इधर से गुजरा
नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी

खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र
दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी

झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें
मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी

पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था
वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी

तेरी निगाह से बचने मैं उम्र गुजरी है
उतर गया रग-ए-जान मैं ये नश्तर फिर भी