Last modified on 4 नवम्बर 2020, at 20:49

भार / रामगोपाल 'रुद्र'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 4 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैसे इतना भार सम्हालूँ?

अवहनीय तेरा करुणा-कण,
दुर्बल-पद मेरा दुर्बल मन,
यह वरदान अबल कंधों पर कैसे और भार उठा लूँ?

दूर न जाने कितना जाना,
और, पंथ भी तो अनजाना,
थके पाँव, पथ का हारा मन, कैसे धीर बँधा लूँ?

बालू का थल, कहीं न पानी,
सूखा कण्ठ, तृषाकुल वाणी,
नयनों की मदिरा पी-पी, पी! कैसे प्यास बुझा लूँ?

पिछल जायँ जो पग अनजाने,
गिर जाए यह भार अजाने,
जग हँस देगा, तू हँस देगा; अपनी हँसी करा लूँ?

धड़क रही साहस की छाती,
सम्हल नहीं पाती यह थाती,
थककर बैठ रहूँ पथ में क्या? कायर भीरु कहा लूँ?

सुधि जलती है, पथ जलता है,
आतप भी जल बन छलता है,
बचा हुआ आँखों का पानी भी क्या आज जला लूँ?
आज याद भी काँटे बनकर,
रोक रही गति का अंचल धर,
कुछ ऐसा कर दे, मैं अपनी सारी याद भुला लूँ;

प्रिये हे, सारी याद भुला लूँ!