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मानिनी से / रामगोपाल 'रुद्र'

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बीत गयी रात, रानी, बीत गयी सब रात।

स्वप्न हुए तम के सब सपने,
जिनको समझ रहे थे अपने,
उतर गयी मदिरा नयनों सेप्राची के तट प्रात!

चीख उठे तरु-कोटर के कवि,
आग लगी, दव-से प्रगटे रवि,
फैल गयीं लपटें दिग्-दिग् में, बच न सके जलजात

हौंस रही दिल की दिल ही में,
दीप हुए जल-जल सब धीमे,
जाने के पहले, अब तो, दे बोल बिहँस दो बात!