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नया विहान / रामगोपाल 'रुद्र'

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नया बिहान है, नया कमल खिला!
नया कमल खिला!

गई गुलाम दीनता
मरी पड़ी अधीनता
दिमागो-दिल बुलंद हैं
बँधे-बँधे न छंद हैं
विवर्ण देश को सुवर्ण-हल मिला!

अरुण जो लाल-लाल है
गगन का ही कमाल है
कि धर धरा को ढाल पर
रगड़ दिया है थाल-भर
गुलाल गोल गाल पर
कि आज ही स्वदेश को सुफल मिला!

अपूर्व आज पर्व है!
कि भूमि ही सगर्व है
यही यही स्वतंत्र दिन
पवित्र मुक्‍ति-मंत्र दिन
अशोक-लोकतन्‍त्र-दिन!
समस्त शोषितों को आज बल मिला!

कि दिन है आज ध्यान का
शहीदों के गुमान का
लहू जो आप दे गए
हमारे पाप ले गए
हमें प्रताप दे गए
लहू का आसमाँ में उठ रहा क़िला!

नयी बहार देखें अब
नया सिंगार देखें अब
कि भूमि तो हरी-भरी
वरुणदिशा सिताम्बरी
उदयदिशा है केसरी
अनन्‍त में तिरंग का पटल खिला!

यही शपथ लें आज हम
रखेंगे इसकी लाज हम
जिएँगे देश के लिए
मरेंगे देश के लिए
बनेंगे देश के दिये
मिटाएँगे हमी तमी का सिलसिला!
नया कमल खिला!