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तू हिमधर / कविता भट्ट

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1
शुष्क पवन
मरुभूमि जीवन
तू प्रेमघन।
2
जग -जंजाल
झूठा यह मधुदेश
तुम विशेष।
3
तोड़ो बन्धन
करो तो आरोहण
जग-क्रन्दन।
4
प्रेम-प्रस्तर
अडिग रह बने
शैल -शिखर।
5
तू हिमधर
पवन झकोरों में
खड़ा निडर।