Last modified on 3 अक्टूबर 2008, at 21:54

मन में साहस काठी में बल ले कर आए हैं / जहीर कुरैशी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:54, 3 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह= भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन में साहस काठी में बल लेकर आए हैं
हम सूने जीवन में हलचल लेकर आए हैं

आदम की पीड़ा भी सागर जैसी लगती है
आँसू,आँखों में खारा जल लेकर आए हैं

तुम बीते कल के किस्सों को लेकर बैठ गये
हम देखो, आने वाला कल लेकर आए हैं

उन लोगों से बोलो मेहनत करके भी देखें
जो बातों में सिर्फ ‘करमफल’ ले कर आए हैं

भूख गरीबी हल करने के भाषन दिए बिना
हम बंजर खेतों में ‘हल’ लेकर आए हैं !

इन लोगों की बातों पर विश्वास न कर लेना
जो ‘तस्बीहें’ और ‘कमंडल’ लेकर आए हैं

वायुयान की सुविधा वाले उड़कर आ पहुँचे
हम तो खुद को पैदल-पैदल लेकर आए हैं.