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विदा / अशोक वाजपेयी

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लेखक: अशोक वाजपेयी

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तुम चले जाओगे

पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे

जैसे रह जाती है

पहली बारिश के बाद

हवा में धरती की सोंधी-सी गंध

भोर के उजास में

थोड़ा-सा चंद्रमा

खंडहर हो रहे मंदिर में

अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार|


तुम चले जाओगे

पर थोड़ी-सी हँसी

आँखों की थोड़ी-सी चमक

हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी

यहीं रह जाएँगे

प्रेम के इस सुनसान में|


तुम चले जाओगे

पर मेरे पास

रह जाएगी

प्रार्थना की तरह पवित्र

और अदम्य

तुम्हारी उपस्थिति,

छंद की तरह गूँजता

तुम्हारे पास होने का अहसास|


तुम चले जाओगे

और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे|