सुध रहे तब तो पुकारूँ!
चाहिए यदि कूज हंसी,
फूक तू ही प्राण-बंसी;
अधर-रस करतल-परस से
मैं बिसुधि अपनी बिसारूँ!
मन बने घन की बलाका,
तन-पुलक तरुदल-पताका;
खोल सौ-सौ आँख, पाँखों
छवि धरूँ, पलकों सँवारूँ!
सघन चकमक के जगाए
दाह को उर से लगाए,
नृत्यरत, सतरंग थालों
आरती तेरी उतारूँ!